कभी बिहार के इस स्टेशन पर हजारों छात्र करते थे करियर को बेहतर बनाने की तैयारी

एक समय ऐसा था बिहार के सासाराम में एक खास क्लास चलती थी, ये क्लास खुले आसमान के नीचे जमीन पर 300 से अधिक छात्र बैठकर पढ़ाई करते थे एवं कंपीटिशन की तैयारी किया करते थे। एक अनुमान के अनुसार तब यहां पढ़ने वाले 10 हजार से अधिक छात्रों ने सरकारी नौकरी की परीक्षा में कामयाबी हासिल हुई थी।

कभी बिहार के इस स्टेशन पर हजारों छात्र करते थे करियर को बेहतर बनाने की तैयारी

सासाराम स्टेशन पर हजारों बच्चे करते थे करियर को बेहतर बनाने की तैयारी

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Highlights

  • ‘प्लेटफॉर्म क्लास’ की हर तरफ हो रही चर्चा।
  • 10 हजार से अधिक छात्र करते थे सरकारी नौकरी की तैयारी।
  • छात्रों के उत्पात की वजह से बंद हुई क्लास।

पटना : बिहार के छात्र बेहद ही जुनूनी होते है। वह अपने लक्ष्य के लिए बहुत ज्यादा मेहनत करते है, वे जानते है कि कामयाबी का कोई भी शॉर्टकट नहीं होता, बस इसलिए वे जी तोड़ मेहनत करने में लगे रहते है, वो कभी भी संसाधन की कमी का रोना नहीं रोते एवं उसे अपने रास्ते का रोड़ा बनने से रोकते है। वह कठिन से कठिन स्थितियों में भी पढ़ाई करने का हुनर रखते है, एक ऐसा ही अजीब पढ़ाई का केंद्र हुआ करता था सासारम रेलवे स्टेशन।

खबरों का कहना है कि सासाराम रेलवे स्टेशन पर होने वाली पढ़ाई की चर्चा 1-2 दिनों से सोशल मीडिया खासकर, ट्विटर पर होने लगी है। तमाम जाने माने लोग और सिविल सर्वेंट कुछ पुरानी फोटोज को साझा करते हुए रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म पर पढ़ाई करने वाले स्टूडेंट्स के दृढ़ निश्चय और जुनून को लेकर कसीदे भी काटे है। लेकिन अब या बात भी पुरानी हो चुकी है, वहीं ऐसे हम आपको सासाराम स्टेशन पर चलने वाले इस अनोखे ‘प्लेटफॉर्म क्लास’ कि इस पूरी कहानी को आज हम बताएंगे।

खबरों का कहना है कि बिहार में तकरीबन 20 वर्ष पहले सासाराम पर एक क्लास शुरू हुई, जिसकी हर तरफ चर्चा हो रही। दरअसल ये क्लास सासाराम स्टेशन प्लेटफॉर्म पर होती है, जो हर रोज रात्रि में चलता था। खुले आसमान के नीचे स्टेशन की जमीन पर ही,  यहां सुपर थर्टी की तरह 30 स्टूडेंट नहीं बल्कि 300 से अधिक स्टूडेंट रोज पढ़ने के लिए इक्कठा हो जाते है और फिर रेलवे की रोशनी तले अपने जीवन को रोशनी देने में सफल हो जाते है। यहां पर पढ़ाई कर के 10 हजार से अधिक स्टूडेंट ने सरकारी नौकरी की परीक्षा में कामयाबी हासिल की। इस ‘प्लेटफॉर्म क्लास’ में कोई टीचर भी नहीं था और ना किसी भी तरह की कोई ट्यूशन फीस ली जाती थी।

 

इस स्टेशन में पढ़ने वाले स्टूडेंट्स ने स्टेशन मास्टर, टैक्नीशियन,  टैक्नीशियन, टीटीई, गुड्स गार्ड जैसे रेलवे की नौकरी के साथ बैंक पीओ, बिहार पुलिस दरोगा। जीडी, SSC जैसी प्रतियोगी प्ररीक्षाओं में झंडे गाड़ दिए है। इतना ही इसके साथ ही BPSC की परीक्षा पास कर अधिकारी भी बन चुके है, लेकिन अब यह क्लास बंद हो चुकी है। रेलवे स्टेशन पर चलने वाली इस क्लास को रेलवे प्रशासन ने पूरी तरह से बंद करवा दिया है।

छात्रों के दंगों की वजह से बंद की गई क्लास : 

इतना ही नहीं यहां अक्टूबर वर्ष 2019 में रेलवे की कथित निजीकरण की खबर के पश्चात हजारों की संख्या में स्टूडेंट जुटे थे और जमकर उत्पात मचाना शुरू कर दिया है। तब इल्जाम लगा था कि उस प्रदर्शन में सासाराम रेलवे स्टेशन पर बैठकर पढ़ने वाले स्टूडेंट भी थे। इतना ही नही जमकर पत्थरबाजी और तोड़फोड़ भी की गई। प्रदर्शन में सासाराम SP सहित कई रेलवे अधिकारीयों को चोटें आई। इसके पश्चात प्लेटफॉर्म शेड के तले चलने वाला ये क्लास बंद हुई। साथ ही उन हजारों स्टूडेंट की पढ़ाई का भी नुकसान हुआ जो यहां आकर पढ़ना चाहते थे कुछ बनना चाह रहे थे।

स्टूडेंट का हुआ भारी नुकसान : 

खबरों का कहना है कि यहां पढ़कर इंडियन रेल में नौकरी करने वाले रमेश कुमार ने कहा है कि सासाराम रेलवे स्टेशन का उनकी जिंदगी में बहुत अहम् स्थान है। वो आज जो कुछ भी है वह यहां बैठकर की पढ़ाई के कारण से हैं। यहां पढ़ने वाले हजारों स्टूडेंट्स ने सरकारी नौकरी अपने नाम की है। उनके मित्र और जानने वाले छात्र फैजान अहमद, रेलवे गुड्स गार्ड, टैक्नीशियन, विपिन कुमार, रेलवे कर्मचारी, मुन्ना कुमार, मुकेश कुमार गुड्स गार्ड, आशुतोष कुमार टैक्नीशियन, मिथलेश कुमार, बैंक पीओ आज भी इस दौर को याद कर भावुक हो जाते हैं। लेकिन यहां जिस तरह से घटनाक्रम हुआ और फिर यहां बैठकर पढ़ाई करने पर रोक लग गई, उससे मेहनती और गरीब छात्रों का बहुत हानि हुई है।

बार बार बिजली जाने के बाद शुरू हुई थी क्लास : 

तकरीबन 20 वर्ष पूर्व सासाराम में बिजली की आंख मिचौली से तंग आकर 4-5 छात्रों ने यहां रात में पढ़ना शुरू कर दिया था। रेलवे की रौशनी में बैठकर पढ़ने वाले ये छात्र जब कामयाब होने लग गए थे, तो यहां आकर पढ़ने वाले स्टूडेंट का आंकड़ा तेजी से बढ़ने लगा। इसके पश्चात 300 से 400 छात्र यहां बैठकर पढ़ने लगे और साल दर साल यहां से सैकड़ो की तादाद में छात्र कामयाब होने लग गई।

इतना ही नहीं यहां पढ़ने वाले अधिकतर वो स्टूडेंट होते थे जो कोचिंग क्लास की फीस देने में असमर्थ रहे। वो यहां बैठकर पढ़ते थे और ग्रुप डिस्कशन करते थे, एक दूसरे से नोट्स भी साझा किए करके पढ़ाई करते थे और कामयाबी हासिल की है। रेलवे प्रशासन ने भी उनको तब खूब सहयोग भी दिया था। पटना से यहां पढ़ने वाले छात्रों का आईकार्ड बनाकर भेज दिया गया है। छात्र जहां पढ़ते थे वहां बल्ब फ्यूज होने के पश्चात उसे तत्काल परिवर्तन कर दिया जाता था। तो वहीं तात्कालीन स्टेशन मास्टर ने तब साफ पीने की पानी की भी व्यवस्था बी करवाई थी।

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