
भारत की प्राचीन सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहरों में "चौंसठ योगिनी मंदिर" का एक विशेष स्थान कहा जाता है। यह मंदिर न केवल अपनी रहस्यमयी संरचना और अद्वितीय स्थापत्य के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसकी धार्मिक मान्यता और ऐतिहासिक महत्व भी बहुत ज्यादा गहरा बताया जाता है। भारत में कई स्थानों पर चौंसठ योगिनी मंदिर बना हुआ है, जैसे कि मध्य प्रदेश के मितावली, जबलपुर और ओडिशा के हीरापुर में, लेकिन सभी का मूल उद्देश्य और संरचना समान रूप से शक्ति सम्पन्न है।
"योगिनी" शब्द संस्कृत के "योग" से मिलकर बना हुआ है, जिसका अर्थ है 'जुड़ना' या 'मिलना'। योगिनियाँ तांत्रिक परंपरा की शक्तिशाली देवीय शक्तियाँ होती हैं। ये देवी माँ दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की अभिव्यक्तियाँ हैं और आम तौर पर 64 की संख्या में इनकी पूजा की जाती है। इन योगिनियों का उल्लेख 'योगिनी तंत्र', 'कौल तंत्र' और अन्य शैव-शाक्त ग्रंथों में विस्तृत रूप से हुआ है।
तांत्रिक परंपरा से संबंध: ऐसा कहा जाता है कि 8वीं से 12वीं शताब्दी के बीच भारत में तांत्रिक परंपरा ने तीव्र गति से विकास हुआ। इस काल में शक्तिवाद, योगिनी उपासना और कौलाचार जैसी परंपराएँ उभर कर हर किसी के सामने आई। चौंसठ योगिनी मंदिरों का निर्माण इन्हीं धार्मिक प्रवृत्तियों का परिणाम कहा जाता है।
मंदिरों की स्थापत्य कला: शास्त्रों का कहना है कि अधिकांश योगिनी मंदिर खुले आकाश के नीचे गोलाकार रूप में बने हुए है। इन मंदिरों की यह विशेष आकृति तंत्र की मंडल प्रणाली को दर्शाती है, जहाँ ध्यान, साधना और पूजा की जाती थी। मंदिर में स्थित 64 कक्षों में प्रत्येक कक्ष में एक योगिनी की मूर्ति विराजमान होती है।
मितावली (मुरैना, मध्य प्रदेश): कहा जाता है कि मितावली का चौंसठ योगिनी मंदिर का निर्माण लगभग 11वीं शताब्दी में करवाया गया और यह स्थापत्य की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसकी गोलाकार संरचना और केंद्रीय मंडप भारतीय संसद भवन के लिए प्रेरणा स्रोत कहा जाता है।
विशेषताएँ: गोलाकार संरचना (व्यास लगभग 125 फीट), 64 कक्ष, प्रत्येक में योगिनी की मूर्ति, केंद्रीय शिवलिंग युक्त मंडप, ऊँचाई पर स्थित, जिससे ध्यान और साधना के लिए उपयुक्त वातावरण बनता है।
भुवनेश्वर से लगभग 15 किलोमीटर दूर स्थित यह मंदिर 9वीं शताब्दी से बसा हुआ है। यह मंदिर भी गोलाकार है और यहाँ की योगिनी मूर्तियाँ भित्तियों पर खुदी हुई हैं। यहाँ की खास विशेषताएं है कि इस जगह पर काले ग्रेनाइट से बनी हुई मूर्तियाँ है, हर मूर्ति की अलग मुद्रा और वाहन है, इतना ही नहीं तांत्रिक पूजा के लिए उपयुक्त स्थान माना जाता है।
यह मंदिर नर्मदा नदी के तट पर स्थित है और चट्टानों पर बने खूबसूरत ध्वनि-प्रतिक्रियाशील क्षेत्र में बना हुआ है। यहाँ के मूर्तियों की विशेषता इनका गहरा भाव, आभूषण और मुद्रा है।
धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व
योगिनी साधना: योगिनी पूजा सामान्य देवी-पूजा से अलग है। यह तांत्रिक साधना की एक उच्च कोटि है, जिसमें योगिनियों के माध्यम से शक्ति, सिद्धि और आत्मबोध की प्राप्ति आसानी से हो जाती है। संख्या '64' को हिन्दू दर्शन में पूर्णता का प्रतीक कहा जाता है। यह 64 कलाओं, 64 विद्याओं और 64 तांत्रिक शक्तियों का प्रतिनिधित्व करती है।
मंडलाकार संरचना: अधिकांश मंदिर गोलाकार (circular) होते हैं, जो "मंडल" की अवधारणा पर आधारित हैं। यह तांत्रिक पूजा के लिए एक अनिवार्य रचना मानी जाती है। इस मंदिर में अधिकांश चौंसठ योगिनी मंदिर बिना छत के बनाए गए हैं। इसके पीछे दो प्रमुख कारण माने जाते हैं:
मूर्तियों की विविधता: हर योगिनी की मूर्ति अद्वितीय है—कुछ नरसिंह रूप में, कुछ पशु मुख वाली, कुछ वाद्य यंत्र बजाती हुई। इनके पीछे प्रतीकात्मक और आध्यात्मिक अर्थ होते हैं।
शिल्प कौशल: इन मूर्तियों का निर्माण उच्च कोटि के शिल्पकारों द्वारा किया गया था। उनका ध्यान चेहरे की भंगिमा, मुद्रा, आभूषण और सौंदर्य पर विशेष रूप से केंद्रित था।
रोचक तथ्य
चौंसठ योगिनी मंदिर न केवल भारत की तांत्रिक परंपरा का जीवंत प्रमाण हैं, बल्कि ये उस दौर की सांस्कृतिक, धार्मिक और स्थापत्य विरासत का एक अनमोल दस्तावेज भी हैं। इन मंदिरों का अध्ययन आज भी रहस्य और आकर्षण का विषय है। तंत्र, योग और शक्ति की परंपरा को समझने के लिए ये मंदिर अचूक साधन हैं।