
इस वक़्त यानि (वर्त्तमान) समय में इंडिया वर्ल्ड की सबसे तेजी से डिजिटल रूप से विकसित हो रही अर्थव्यवस्थाओं में से एक कहा जाता है। इसके पीछे सबसे महत्वपूर्ण पहल "डिजिटल इंडिया मिशन" है, जिसे वर्ष 2015 में भारत सरकार ने पीएम श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में शुरू किया था। इसका उद्देश्य भारत को "डिजिटली सशक्त समाज" और "ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था" में बदलना था। इस अभियान ने न केवल तकनीक को आम जनता तक पहुँचाया, बल्कि सरकारी सेवाओं को पारदर्शी, कुशल और सहज बनाने में भी क्रांतिकारी बदलाव लाया है। इस लेख में हम "डिजिटल इंडिया" की अब तक की प्रमुख उपलब्धियाँ, चुनौतियाँ, और इसके सामाजिक-आर्थिक प्रभाव का विस्तृत विश्लेषण करेंगे।
उद्देश्य और प्रमुख स्तंभ: डिजिटल इंडिया मिशन तीन मुख्य दृष्टिकोणों पर आधारित है: डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर का निर्माण, सेवाओं का डिजिटल डिलीवरी के माध्यम से लाभान्वित करना, डिजिटली सशक्त नागरिक बनाना।
प्रमुख उपलब्धियाँ (2015–2025)
1. डिजिटल सेवाओं की पहुँच का विस्तार: UMANG एप्लिकेशन (Unified Mobile Application for New-Age Governance): एक ही प्लेटफॉर्म पर 20+ मंत्रालयों की 1500+ सेवाएँ, जैसे गैस सब्सिडी, पासपोर्ट आवेदन, बिजली बिल भुगतान आदि।
DigiLocker: एक सुरक्षित क्लाउड स्टोरेज जहाँ नागरिक अपना ड्राइविंग लाइसेंस, मार्कशीट, आधार आदि डिजिटल रूप में स्टोर कर सकते हैं।
MyGov.in: नीति निर्माण में जनता की भागीदारी हेतु एक संवाद मंच।
2. आधार: यूनिक डिजिटल पहचान: अब तक 130+ करोड़ से अधिक भारतीयों को आधार जारी किया जा चुका है। इससे डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT) प्रणाली को बल मिला – गैस सब्सिडी, वृद्धावस्था पेंशन, छात्रवृत्ति, मनरेगा भुगतान आदि सीधे बैंक खाते में।
3. ग्रामीण भारत में इंटरनेट क्रांति: भारत नेट परियोजना के माध्यम से 2.5 लाख से अधिक ग्राम पंचायतों को ऑप्टिकल फाइबर से जोड़ा गया। इससे ग्राम स्तर पर CSC (कॉमन सर्विस सेंटर) और डिजिटल सेवाएँ पहुँचने लगीं।
4. डिजिटल भुगतान का विस्फोट: UPI (Unified Payments Interface) ने लेन-देन की प्रक्रिया को इतना सरल बना दिया कि अब हर गली-मोहल्ले में "QR कोड स्कैन करो" आम हो गया है। 2024 तक हर महीने 1200+ करोड़ डिजिटल ट्रांजैक्शन हुए थे। BHIM, Paytm, PhonePe, Google Pay जैसे प्लेटफार्मों की मदद से ग्रामीण और शहरी क्षेत्र दोनों में तेज़ी से कैशलेस ट्रांजैक्शन बढ़े हैं।
5. ऑनलाइन शिक्षा और स्वास्थ्य में विकास:
DIKSHA पोर्टल: सरकारी और निजी स्कूलों के लिए एक कॉमन डिजिटल लर्निंग प्लेटफॉर्म – ऑडियो, वीडियो, पीडीएफ, लाइव क्लासेस उपलब्ध।
e-Sanjeevani: टेलीमेडिसिन प्लेटफॉर्म जहाँ डॉक्टर ऑनलाइन परामर्श देते हैं, विशेषकर दूरस्थ क्षेत्रों के लिए वरदान।
6. स्टार्टअप और उद्यमिता को बढ़ावा: डिजिटल इंडिया के कारण युवा पीढ़ी स्टार्टअप खोलने में रुचि ले रही है – हेल्थटेक, एग्रीटेक, फिनटेक, एडटेक आदि क्षेत्रों में, भारत अब तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप इकोसिस्टम बन चुका है।
7. ई-गवर्नेंस से पारदर्शिता: e-Courts, e-Office, e-Hospital जैसी पहलें सरकारी कामकाज को पारदर्शी, डिजिटल और कागज रहित बना रही हैं। ई-टेंडरिंग और ई-प्रोक्योरमेंट से भ्रष्टाचार कम हुआ है और प्रक्रियाओं में पारदर्शिता आई है।
1. वित्तीय समावेशन: जनधन योजना, आधार और मोबाइल (JAM ट्रिनिटी) के माध्यम से करोड़ों लोग बैंकिंग सेवाओं से जुड़े। सरकारी लाभार्थियों को सीधे बैंक खाते में पैसा पहुँचना सुनिश्चित हुआ।
2. रोज़गार के नए अवसर: डेटा एंट्री, ऐप डेवलपमेंट, डिजिटल मार्केटिंग, ई-कॉमर्स आदि नए डिजिटल नौकरियों के क्षेत्र खुले। गिग इकोनॉमी में बढ़ोतरी – जैसे Zomato, Swiggy, Urban Company जैसी अन्य सेवाओं में रोजगार।
3. महिला सशक्तिकरण ; महिलाएँ ऑनलाइन ब्यूटी प्रोडक्ट्स, सिलाई, ट्यूशन सेवाएँ देकर आर्थिक रूप से स्वतंत्र हो रही हैं। महिला स्वयं सहायता समूह ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर अपने उत्पाद बेचने लगे हैं।
प्रमुख चुनौतियाँ
1. डिजिटल डिवाइड: शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच इंटरनेट स्पीड, नेटवर्क कवरेज और डिवाइस की उपलब्धता में अब भी बड़ा अंतर है। इंटरनेट सुविधाओं तक सीमित पहुँच से सामाजिक विषमता बनी रहती है।
2. डिजिटल साक्षरता की कमी: अब भी लाखों लोगों को मोबाइल एप्लिकेशन, डिजिटल पेमेंट या सरकारी पोर्टल के उपयोग की समझ नहीं है। बुजुर्ग, अशिक्षित या कम शिक्षित वर्गों को विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता है।
3. साइबर सुरक्षा और डेटा गोपनीयता: डिजिटल ट्रांजैक्शन बढ़ने से फिशिंग अटैक, डेटा चोरी, ऑनलाइन फ्रॉड जैसी घटनाओं में भी वृद्धि हुई है। अभी तक भारत में मजबूत डेटा प्रोटेक्शन लॉ लागू नहीं है। जिसकी वजह से कई लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ता है।
4. भाषाई बाधाएँ: अधिकांश सरकारी वेबसाइट और मोबाइल ऐप्स हिंदी व अंग्रेज़ी तक सीमित हैं। भारत जैसे बहुभाषी देश में क्षेत्रीय भाषाओं में डिजिटल सामग्री का अभाव बड़ी बाधा है।
5. तकनीकी संसाधनों की कमी: कई सरकारी पोर्टल धीमे या बार-बार क्रैश हो जाते हैं। डिजिटल सेवाओं की निरंतरता और गुणवत्ता में सुधार की आवश्यकता है।
समाधान और सुझाव:
4. प्राइवेट सेक्टर की भागीदारी: PPP मॉडल के तहत डिजिटल बुनियादी ढाँचे का विकास हो। निजी क्षेत्र से निवेश लेकर भारतनेट जैसी योजनाओं को पूरा किया जाए।
5. स्वास्थ्य और शिक्षा पर डिजिटल निवेश: टेलीमेडिसिन, ई-लर्निंग, डिजिटल लैब्स और स्किल डेवेलपमेंट पर निवेश बढ़ाया जाए। डिजिटल इंडिया ने भारत को तकनीकी रूप से सक्षम बनाने में ऐतिहासिक भूमिका निभाई है। इससे न केवल सरकारी सेवाओं की गुणवत्ता सुधरी है, बल्कि नागरिकों को भी सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्त किया गया है। लेकिन अब भी कई चुनौतियाँ मौजूद हैं – जैसे डिजिटल डिवाइड, साइबर सुरक्षा, भाषाई अवरोध और तकनीकी अवसंरचना की कमी। अगर इन चुनौतियों को प्रभावी ढंग से हल किया जाए, तो डिजिटल इंडिया भविष्य में भारत के विकास की सबसे सशक्त रीढ़ बन सकता है।