शतरंज का जन्मदाता है भारत, अब भारतीय खिलाड़ियों की चालों से चित हो रही दुनिया

शतरंज को बुद्धिजीवियों का खेल माना जाता है, और हाल के दिनों में भारतीय शतरंज खिलाड़ियों ने दिग्गजों को मात देकर दुनिया में अपनी बुद्धि और तर्कशक्ति का लोहा मनवाया है। विश्वनाथन आनंद से लेकर, रमेशबाबू प्रज्ञानंद और डी गुकेश तक, विश्व शतरंज में भारतीय खिलाड़ियों का परचम लहरा रहा है।

शतरंज का जन्मदाता है भारत, अब भारतीय खिलाड़ियों की चालों से चित हो रही दुनिया

भारतीय शतरंज स्टार डी गुकेश बने विश्व चैंपियन

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हाइलाइट्स

  • भारत में हुआ था शतरंज का अविष्कार।
  • महाभारत काल में भी खेला जाता था शतरंज।
  • विश्व शतरंज के सबसे युवा चैंपियन बने डी गुकेश।

शतरंज या चैस (Chess) को दुनियाभर में बुद्धिमानों का खेल माना जाता है। इसमें जहाँ शारीरिक श्रम ना के बराबर होता है, वहीं, इसकी हर चल आपके दिमाग की हर एक नस की अच्छी कसरत करवा देती है। इसलिए कई डॉक्टर्स भी स्वस्थ दिमाग के लिए शतरंज खेलने की सलाह देते हैं, इससे याददाश्त और एकाग्रता तो बढ़ती ही है, साथ ही ये खेल, समस्याओं के सामने आपको धीर-गंभीर रहना भी सिखाता है।

मोनाश यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ और प्रीवेंटिव मेडिसिन की एक रिसर्च के अनुसार, शतरंज आपके IQ लेवल को भी बढ़ाता है, साथ ही शतरंज खेलने वालों में डिमेंशिया (भूलने की बीमारी) का खतरा भी कम हो जाता है। 1973 से लेकर आज तक शतरंज पर कई रिसर्च हो चुकी हैं, जिसमे इस खेल की खूबियां सामने आई हैं। किन्तु क्या आप जानते हैं कि आज वैज्ञानिक जिस खेल पर अध्ययन कर रहे हैं, और उसे मानसिक सवास्थ्य के लिए बेहतर बना रहे हैं, उसका जन्म कहाँ हुआ था और वो लोग कौन थे जिन्होंने इसे बनाया ?

शतरंज का इतिहास :

आपको ये जानकर हैरानी हो सकती है कि शतरंज का जन्मदाता भारत है। वही भारत, जिसके लिए सैफ अली खान जैसे लोग कहते हैं कि अंग्रेज़ों से पहले भारत कोई देश ही नहीं था, जिसके लिए कई वामपंथी कहते हैं कि मुग़लों ने भारत को सोने की चिड़िया बनाया और अंग्रेज़ों ने लिखना-पढ़ना सिखाया। तो ऐसे में सवाल उठता है कि, जब भारत इतना ही पिछड़ा, अनपढ़, गरीब था, तो उसने 6ठी शताब्दी में शतरंज जैसे खेल का अविष्कार कैसे कर लिया, जिस पर आज भी वैज्ञानिक रिसर्च कर रहे हैं।

प्राचीन भारत में इस खेल को 'चतुरंग' कहा जाता था, जो महाभारत में वर्णित एक युद्ध व्यूह रचना का नाम भी है। कुछ ग्रंथों में ये भी उल्लेख है कि महाभारत काल में भीम अपनी पत्नी हिडिम्बा संग चतुरंग खेला करते थे। आज भी  नागालैंड के दीमापुर की पहाड़ियों में पत्थर की बड़ी-बड़ी मोहरें बिखरी हुईं हैं, जिन्हे देखने के लिए पर्यटक दूर दूर से आते हैं। इस हिसाब से शतरंज का इतिहास 7000 पुराना माना जाता है, लेकिन इसका मौजूदा स्वरुप 6ठी-7वीं शताब्दी में सामने आया। ये वो समय था जब, अरब में इस्लाम के पैगम्बर मोहम्मद का जन्म हुआ ही था। इसके बाद धीरे-धीरे ये खेल भारत से फारस में पहुंचा, जिसे आज ईरान कहा जाता है, वहां से अरब देशों से होते हुए शतरंज पूरी दुनिया में लोकप्रिय हो गया।

शतरंज का जन्मदाता होने के कारण भारत के खिलाड़ियों ने भी इस खेल में जमकर अपना लोहा मनवाया और दुनियाभर के धुरंधरों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया। विश्वनाथन आनंद, डी गुकेश, रमेशबाबू प्रज्ञानंद जैसे कई भारतीय खिलाड़ियों की चालों के आगे, दुनियावी दिग्गजों के दांव फीके पड़ गए।

विश्वनाथन आनंद :

भारत में शतरंज को लोकप्रिय करने का सबसे अधिक श्रेय विश्वनाथन आनंद को ही जाता है। आनंद को पहले ऐसे भारतीय होने का गौरव प्राप्त है, जिन्होंने शतरंज में विश्व चैंपियन का खिताब जीता था। विश्वनाथन आनंद ने 2000, 2007, 2008, 2010 और 2012 में भारत को विश्व शतरंज का सिरमौर बनाया है।

रमेशबाबू प्रज्ञानंद :

विश्वनाथन आनंद को ही अपना गुरु मानने वाले प्रज्ञानंद ने हाल ही में इतिहास रचा है। ग्रांडमास्टर का उपाधि प्राप्त करने वाले चौथे सबसे कम उम्र के खिलाड़ी हैं। 2005 में जन्मे प्रज्ञानंद ने 2023 शतरंज विश्व कप का फाइनल मुकाबला खेला था, हालाँकि वे दूसरे स्थान पर रहे थे। जहाँ नॉर्वे के मैग्नस कार्लसन के हाथों उन्हें शिकस्त का सामना करना पड़ा था। हालाँकि, टाटा स्टील मास्टर्स 2025 जीतकर 2006 में विश्वनाथन आनंद के बाद यह खिताब जीतने वाले पहले भारतीय बन गए हैं।

डी गुकेश :

मौजूदा समय में भारतीय शतरंज के क्षितिज में जो नाम सबसे अधिक चमक रहा है, वो है डी गुकेश। भारत के डी गुकेश ने शतरंज की दुनिया में इतिहास रचते हुए महज 18 साल की उम्र में वर्ल्ड चैंपियन का खिताब जीत लिया। उन्होंने चीनी चैंपियन डिंग लिरेन को 7.5-6.5 के स्कोर से हराकर यह उपलब्धि हासिल की। यह मुकाबला 14 राउंड तक चला, जिसमें आखिरी बाजी ने गुकेश को चैंपियन बना दिया। इस जीत के साथ, वह सबसे कम उम्र के विश्व चैंपियन बने और विश्वनाथन आनंद के बाद यह खिताब जीतने वाले दूसरे भारतीय खिलाड़ी भी बन गए।

गुकेश और लिरेन के बीच यह मुकाबला 17 दिनों तक चला। 13 राउंड तक दोनों बराबरी पर थे, लेकिन 14वें और आखिरी राउंड में गुकेश ने निर्णायक बढ़त बनाई। आखिरी बाजी लगभग 5 घंटे चली, जिसमें 58 चालें चलीं। एक समय ऐसा था जब यह बाजी ड्रा की ओर बढ़ रही थी, लेकिन लिरेन की एक गलती ने उन्हें हार की ओर धकेल दिया। लिरेन ने अपने घोड़ों की अदला-बदली में चूक की, जिसे गुकेश ने तुरंत भांप लिया। उनकी तीसरी ही चाल ने लिरेन को हार मानने पर मजबूर कर दिया। इस जीत को क्लासिकल शतरंज की बेहतरीन मिसाल माना जा रहा है।

गुकेश की इस ऐतिहासिक जीत पर शतरंज के दिग्गजों की भी प्रतिक्रियाएँ देखने को मिली थी। पूर्व चैंपियन व्लादिमीर क्रेमनिक ने लिरेन की गलती को "बचकानी" करार दिया और कहा कि यह "शतरंज का अंत" जैसा था। हालांकि, उनके इस बयान पर विवाद भी खड़ा हुआ था। लोगों ने यह याद दिलाया कि 1892 के एक फाइनल मैच में मिखाइल चिगोरिन ने ऐसी ही गलती की थी और दो चालों में हार गए थे। दूसरी ओर, 15 साल तक वर्ल्ड चैंपियन रहे गैरी कास्परोव ने गुकेश की तारीफ करते हुए कहा कि उन्होंने अपनी उम्र से परे प्रदर्शन दिखाया। उन्होंने गुकेश की तैयारी और उनके दृढ़ संकल्प की सराहना की।

बता दें कि, डी गुकेश ने 11 साल की उम्र में सबसे युवा वर्ल्ड चैंपियन बनने का सपना देखा था। उन्होंने 11 साल 6 महीने की उम्र में एक इंटरव्यू में कहा था कि वह एक दिन यह खिताब हासिल करेंगे। सात साल की मेहनत और लगन ने उनके सपने को हकीकत में बदल दिया।  FIDE (फिडे) शतरंज चैंपियनशिप का आयोजन करता है। कभी इस चैंपियनशिप को लेकर विवाद हुआ करता था, जब दो खिलाड़ी खुद को विश्व चैंपियन बताते थे। 2006 में यह विवाद सुलझा, और चैंपियनशिप को एकीकृत किया गया। उस दौर में क्रेमनिक खुद को क्लासिकल चैंपियन कहते थे। बाद में 2007 में उन्हें भारत के विश्वनाथन आनंद ने हराया।

अब डी गुकेश की जीत पर सवाल उठाकर क्रेमनिक पर आरोप लगाए जा रहे हैं कि वह अपनी पुरानी हार का गुस्सा नए भारतीय चैंपियन पर निकाल रहे हैं। डी गुकेश की यह जीत केवल भारत के लिए गर्व का विषय नहीं है, बल्कि शतरंज के इतिहास में एक नया युग भी है। उनकी लगन और प्रदर्शन ने साबित कर दिया है कि उम्र महज एक संख्या है। उनकी कहानी उन सभी युवाओं के लिए प्रेरणा है, जो बड़े सपने देखने और उन्हें हासिल करने का जज्बा रखते हैं।

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