
वर्तमान युग में सोशल मीडिया का प्रभाव दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। यह न केवल संपर्क और संवाद का माध्यम बन गया है, बल्कि राजनीति, अर्थव्यवस्था, शिक्षा और सामाजिक संरचना को भी गहराई से प्रभावित कर रहा है। विशेष रूप से युवाओं पर सोशल मीडिया का प्रभाव अत्यंत व्यापक और गहन है। एक ओर जहाँ यह मंच विचारों की स्वतंत्रता, संवाद और वैश्विक ज्ञान के आदान-प्रदान का सशक्त माध्यम बना है, वहीं दूसरी ओर नैतिक मूल्यों, सामाजिक व्यवहार और मानसिक स्वास्थ्य पर इसके नकारात्मक प्रभाव भी सामने आ रहे हैं।
सोशल मीडिया इंटरनेट आधारित उन प्लेटफॉर्म्स का समूह है, जो उपयोगकर्ताओं को सामग्री के सृजन, साझा करने, संवाद और सहयोग की सुविधा प्रदान करते हैं। ये प्लेटफॉर्म्स मोबाइल और वेब आधारित तकनीक से संचालित होते हैं, जिनके माध्यम से व्यक्ति या समुदाय आपसी संवाद में भाग लेते हैं, विचार व्यक्त करते हैं और सामाजिक नेटवर्किंग करते हैं। सन् 2000 के दशक की शुरुआत में वेब 2.0 की अवधारणा ने इंटरनेट के उपयोग की दिशा को पूरी तरह बदल दिया। पहले जहाँ उपयोगकर्ता केवल स्थिर वेबपृष्ठों को देख सकते थे, वहीं अब वे सक्रिय रूप से कंटेंट बना सकते हैं, साझा कर सकते हैं और उस पर प्रतिक्रिया दे सकते हैं। इसी परिवर्तन ने सोशल मीडिया का जन्म दिया।
1. सूचना का लोकतंत्रीकरण: सोशल मीडिया ने जानकारी और विचारों की पहुँच को जनसामान्य तक पहुँचाया है। यह अब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सूचना के अधिकार का प्रतीक बन चुका है।
2. वैश्विक संवाद और जागरूकता: युवा आज वैश्विक घटनाओं और मुद्दों से जुड़े रहते हैं। वे जलवायु परिवर्तन, लैंगिक समानता, मानवाधिकार जैसे विषयों पर अपनी राय रखते हैं और जनजागरूकता फैलाते हैं।
3. शिक्षा और सीखने का नया मंच: यू-ट्यूब, लिंक्डइन लर्निंग, कोरा जैसे प्लेटफॉर्म्स शिक्षा और ज्ञान साझा करने का सशक्त माध्यम बन चुके हैं।
4. रोज़गार और उद्यमिता के अवसर: सोशल मीडिया मार्केटिंग, डिजिटल कंटेंट क्रिएशन, इन्फ्लुएंसिंग जैसे क्षेत्र युवाओं को नए रोजगार और कमाई के अवसर प्रदान कर रहे हैं।
1. निजी जीवन का प्रदर्शन और पहचान संकट: युवा वर्ग अपनी निजी जिंदगी को खुलेआम सोशल मीडिया पर साझा करता है, जिससे आत्मसम्मान, ईर्ष्या, तुलना और मानसिक तनाव उत्पन्न होता है।
2. अप्रमाणित सूचना और अफवाहों का प्रसार: सोशल मीडिया पर फैलाई जा रही फर्जी खबरें (Fake News) युवा वर्ग को भ्रमित करती हैं और कभी-कभी सामाजिक विद्वेष का कारण बन जाती हैं।
3. नैतिक और सामाजिक मूल्यों में गिरावट: अनुचित और आपत्तिजनक सामग्री की खुली उपलब्धता के कारण युवाओं के नैतिक मूल्य और सामाजिक दृष्टिकोण कमजोर होते जा रहे हैं।
4. साइबर अपराधों का खतरा: साइबर बुलिंग (Cyber Bullying): ऑनलाइन उत्पीड़न बढ़ता जा रहा है।
साइबर स्टॉकिंग: युवतियों के प्रति पीछा करने और परेशान करने के मामले बढ़ रहे हैं।
डिजिटल धोखाधड़ी: फर्जी प्रोफाइल, फ्रॉड कॉल्स और हैकिंग से खतरा बढ़ा है।
सोशल मीडिया और युवा मानसिकता: सोशल मीडिया के निरंतर उपयोग ने युवाओं की सोच, अभिव्यक्ति और निर्णय क्षमता को प्रभावित किया है। वे धीरे-धीरे ऑनलाइन पहचान को ही अपनी असली पहचान मानने लगे हैं। इससे वास्तविक जीवन में संवाद, सहानुभूति और धैर्य जैसे गुण कमजोर पड़ने लगे हैं।
मोबाइल उपकरणों की भूमिका: स्मार्टफोन और टैबलेट जैसे मोबाइल उपकरणों की सर्वसुलभता ने सोशल मीडिया के प्रभाव को और अधिक तीव्र बना दिया है। हर समय इंटरनेट की उपलब्धता ने यथार्थ सामाजिक संपर्क की जगह वर्चुअल जुड़ाव को प्राथमिकता दिला दी है। इसका दुष्परिणाम यह है कि युवा अब अधिक समय आभासी दुनिया में बिता रहे हैं, जिससे पारिवारिक संवाद, दोस्ती और व्यक्तिगत संबंध कमजोर हो रहे हैं।
सोशल मीडिया, सार्वजनिक प्रतिष्ठा और मोबाइल टेलीफोनी का बढ़ता प्रभाव
सोशल मीडिया: निजता, प्रतिष्ठा और मानवाधिकारों पर प्रभाव
सोशल मीडिया ने उपयोगकर्ता-जनित सामग्री के माध्यम से आम लोगों के साथ-साथ सार्वजनिक जीवन के प्रतिष्ठित व्यक्तियों की निजता और प्रतिष्ठा को भी प्रभावित किया है। कई मामलों में यह देखा गया है कि सोशल मीडिया पर झूठी, अप्रमाणित अथवा अपमानजनक जानकारी प्रसारित कर व्यक्तियों की छवि को नुकसान पहुँचाया गया है। इसके अलावा, कॉपीराइट उल्लंघन, निजता का हनन और अन्य मानवाधिकारों का अतिक्रमण भी व्यापक स्तर पर देखने को मिला है।
इन गंभीर चुनौतियों के बावजूद सोशल मीडिया का विकास थमा नहीं है। आज यह माध्यम न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में पारंपरिक मीडिया के लिए एक चुनौती बनकर उभरा है और कहीं-कहीं उसका स्थान भी ले चुका है।
अक्सर सोशल मीडिया की आलोचना इस बात के लिए की जाती है कि इसने लोगों के आमने-सामने मिलने और संवाद करने की प्रवृत्ति को कम कर दिया है। पहले जहाँ लोग सामाजिक मेलजोल के लिए समय निकालते थे, वहीं आज वे अधिकतर डिजिटल संपर्क तक सीमित हो गए हैं। फिर भी, यह तथ्य नकारा नहीं जा सकता कि डिजिटल माध्यमों ने सामाजिक नेटवर्किंग के नए आयाम और आकर्षण भी पैदा किए हैं, जो आज की पीढ़ी को जोड़ने का एक प्रभावी साधन बन चुके हैं।
मोबाइल टेलीफोनी: सोशल मीडिया विस्तार का प्रमुख कारक: सोशल मीडिया के व्यापक प्रसार में मोबाइल टेलीफोनी, विशेषकर स्मार्टफोन और टैबलेट्स, की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही है। A.C. Nielsen की "The Social Media Report (2012)" के अनुसार: सोशल मीडिया तक पहुँच बनाने के लिए अधिकतर लोग स्मार्टफोन और टैबलेट्स का उपयोग कर रहे हैं। बढ़ती इंटरनेट कनेक्टिविटी और सस्ते डेटा पैक्स के चलते उपयोगकर्ताओं को कहीं भी, कभी भी सोशल मीडिया का प्रयोग करने की आज़ादी मिल गई है।
सोशल मीडिया का शहरी भारत में विस्तार- इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार दिसंबर 2012 तक भारत के शहरी क्षेत्रों में सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं की संख्या 6.2 करोड़ तक पहुँच चुकी थी। शहरी भारत में हर चार में से तीन व्यक्ति सोशल मीडिया का उपयोग कर रहे हैं।
रिपोर्ट के कुछ प्रमुख बिंदु
सस्ते मोबाइल हैंडसेट्स और स्मार्टफोन की भूमिका: सस्ते और सुविधायुक्त मोबाइल फोन की आसान उपलब्धता ने इंटरनेट और सोशल मीडिया तक पहुँच को सरल बना दिया है। अब भारत में स्मार्टफोन का प्रसार तेजी से हो रहा है, जिनमें इंटरनेट एक्सेस की सुविधा के साथ अनेक तकनीकी विशेषताएँ मौजूद हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि आने वाले वर्षों में भारत में सोशल मीडिया नेटवर्किंग का उपयोग अभूतपूर्व रूप से बढ़ने वाला है। विशेष रूप से मोबाइल इंटरनेट की किफायती उपलब्धता ने इसमें तीव्र वृद्धि की संभावनाओं को और प्रबल कर दिया है।
सोशल मीडिया की सकारात्मक भूमिका: सोशल मीडिया के अनेक सकारात्मक पहलुओं में से एक प्रेरणादायक उदाहरण नेपाल के सुमित झा का है। अगस्त 2012 में काठमांडू से रहस्यमय परिस्थितियों में लापता हुए 25 वर्षीय सुमित झा को फेसबुक के माध्यम से दो साल बाद उनके परिवार ने भारत में खोज निकाला। सुमित के बड़े भाई अमित झा ने बताया कि उन्होंने अपने लापता भाई की तस्वीर फेसबुक पर साझा की थी, और एक साल बाद यही पहल उन्हें सुमित से फिर से मिलाने का माध्यम बनी। यह खबर 2 नवंबर 2014 के दैनिक जागरण में प्रकाशित हुई थी और यह सोशल मीडिया की सकारात्मक शक्ति का एक प्रेरक उदाहरण है।
डॉ. अभिमन्यु सिंह (समाजशास्त्री): उनका मानना है कि सोशल मीडिया का प्रयोग सभी को करना चाहिए, लेकिन इसके लिए नियंत्रण और मॉनिटरिंग अत्यंत आवश्यक है। इस पर उचित समय-सीमा निर्धारित होनी चाहिए क्योंकि इसमें सार्थक और भ्रामक दोनों प्रकार की जानकारी मौजूद होती है। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया पर सत्य और उपयोगी सामग्री डालना हम सबकी जिम्मेदारी है।
युवाओं में बढ़ती अतिसक्रियता और मानसिक प्रभाव: वर्तमान समय में सोशल मीडिया ने युवाओं को समय से पहले आकृष्ट कर लिया है। आज का युवा तत्काल पहचान और प्रतिष्ठा प्राप्त करना चाहता है। लेकिन जब उसकी अपेक्षाएं पूरी नहीं होतीं, तो कुछ युवा आक्रामक या आपराधिक प्रवृत्तियों की ओर भी बढ़ सकते हैं।
नकारात्मक प्रवृत्तियों पर नियंत्रण आवश्यक: सोशल मीडिया के लाभ अनेक हैं, परंतु इससे धार्मिक उन्माद, अश्लीलता और भड़काऊ बयानों के फैलने का भी खतरा है। इन प्रवृत्तियों को रोकने के लिए सख्त कानून बनाए जाने चाहिए और कड़ी निगरानी भी होनी चाहिए।
सकारात्मक सामग्री से रुकेंगी नकारात्मक प्रवृत्तियाँ
डॉ. प्रज्ञेश कुमार मिश्र (मनोवैज्ञानिक)- उनका मानना है कि यदि सोशल मीडिया पर अच्छी और प्रेरणादायक जानकारी प्रस्तुत की जाए, तो इससे युवाओं की आपराधिक प्रवृत्तियाँ रोकी जा सकती हैं। मानव की स्वभाविक प्रवृत्ति अनुकरणात्मक होती है — जैसा वह समाज में देखता है, वैसा ही व्यवहार करने लगता है। इसलिए डिजिटल माध्यमों पर सकारात्मक उदाहरण और सामग्री का प्रसार आवश्यक है।
भारत में युवा शक्ति और सोशल मीडिया का संबंध: आज भारत की 65% जनसंख्या युवा है, जो किसी भी देश के मुकाबले अधिक है। यही युवा सोशल मीडिया के सबसे प्रभावशाली और सक्रिय उपयोगकर्ता हैं। यही कारण है कि सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर युवाओं का आकर्षण दिन-ब-दिन तेजी से बढ़ रहा है, और यह इंटरनेट पर होने वाली सर्वाधिक सक्रिय गतिविधि बन गई है।
एक परिभाषा के अनुसार, "सोशल मीडिया एक वेब-आधारित अत्यंत गतिशील संवाद मंच है, जिसके माध्यम से लोग आपस में संवाद करते हैं, जानकारी साझा करते हैं और उपयोगकर्ता-जनित सामग्री को साझा और संशोधित करते हैं।" आज सोशल नेटवर्किंग साइट्स युवाओं की दैनिक दिनचर्या का हिस्सा बन चुकी हैं। इसके माध्यम से लोग अपनी बात बिना किसी रोक-टोक के देश और दुनिया के कोने-कोने तक पहुँचा सकते हैं।
सोशल मीडिया से जुड़ी युवा पीढ़ी की नई पहचान: आज के युग में सोशल नेटवर्किंग साइट्स ने युवाओं के जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिया है। इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के शहरी क्षेत्रों में प्रत्येक चार में से तीन व्यक्ति किसी न किसी रूप में सोशल मीडिया का उपयोग करते हैं। इस रिपोर्ट में देश के 35 प्रमुख शहरों के आंकड़ों का विश्लेषण करते हुए यह भी सामने आया कि लगभग 77% उपयोगकर्ता मोबाइल फोन के माध्यम से सोशल मीडिया का उपयोग करते हैं।
सोशल मीडिया तक पहुँच को व्यापक बनाने में मोबाइल फोन की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही है, विशेषकर युवाओं के लिए। भारत की जनसंख्या में 25 वर्ष से अधिक आयु के लोग 50% हैं, जबकि 35 वर्ष से कम आयु के लोग 65% हैं। आंकड़े बताते हैं कि भारत में लोग प्रतिदिन औसतन 30 मिनट सोशल मीडिया पर व्यतीत कर रहे हैं। इनमें सबसे बड़ी भागीदारी कॉलेज विद्यार्थियों (82%) और युवाओं (84%) की है।
संपर्क का नया माध्यम बना सोशल मीडिया
सोशल नेटवर्किंग साइट्स के माध्यम से लोग अब स्कूल के दिनों के मित्रों से पुनः जुड़ने लगे हैं। इतना ही नहीं, आज लोग देश-दुनिया के किसी भी कोने में रहने वाले दोस्तों को फेसबुक या अन्य माध्यमों से ढूँढ़ पा रहे हैं। भले ही उनसे आमने-सामने मुलाकात संभव न हो, लेकिन डिजिटल रूप से वे हमेशा जुड़े रहते हैं। सोशल मीडिया की सफलता का प्रमाण यह भी है कि परंपरागत मीडिया संस्थान भी अब सोशल मीडिया पर अपनी सक्रिय उपस्थिति दर्ज कर रहे हैं। फेसबुक और ट्विटर जैसे मंचों पर समाचार पत्र और न्यूज़ चैनल अपने पेज चलाते हैं और जनता द्वारा व्यक्त राय को अपनी रिपोर्टिंग का हिस्सा बना रहे हैं।
सामाजिक आंदोलनों में सोशल मीडिया की भूमिका
भारत ही नहीं, दुनिया भर के अनेक देशों में सोशल मीडिया ने सामाजिक एवं गैर-सरकारी संगठनों को भी सशक्त मंच प्रदान किया है। यह अब सिर्फ स्वयं को दिखाने का माध्यम नहीं रहा। वे देश जहाँ लोकतंत्र को दबाया जा रहा है, वहाँ लोगों ने सोशल मीडिया को लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति का माध्यम बना लिया है। अरब जगत में हाल की क्रांतियों में सोशल मीडिया की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही है। यह माध्यम एक सशक्त जन-संचार मंच बन गया है, जिसने सत्ता की नीतियों को चुनौती देने का साहस भी आम नागरिक को दिया है।
युवाओं का यह वर्ग वह है जो सबसे अधिक सपने देखता है और उन्हें साकार करने के लिए निरंतर प्रयास करता है। सोशल मीडिया ने उन्हें अपने विचार साझा करने, जानकारी फैलाने और वैश्विक समुदाय से जुड़ने का नया अवसर दिया है। आज का युवा इंटरनेट, 4G/5G मोबाइल और तकनीकी संसाधनों का उपयोग कर, देश की सीमाओं से परे जाकर अपने सपनों को नई ऊँचाई देने में जुटा है। ब्लॉगिंग के माध्यम से युवा अपने विचार, ज्ञान और अनुभव साझा कर रहे हैं, जबकि सोशल मीडिया साइट्स के जरिये वे समान विचारधारा वाले लोगों से जुड़कर सामाजिक जिम्मेदारियों को निभा रहे हैं।
सोशल मीडिया के लाभों के साथ-साथ इसके दुष्प्रभाव भी चिंताजनक हैं। आज के युवा इसके आदी होते जा रहे हैं। दिन भर में कई बार स्टेटस अपडेट करना, घंटों तक चैटिंग में समय बिताना, और हर गतिविधि को ऑनलाइन साझा करना नशे की तरह व्यवहार में आ गया है।
इस लत के कारण:
इन प्लेटफार्म्स पर अश्लील सामग्री और भड़काऊ संदेशों का प्रसार भी तेज़ी से होता है, जिसका मनोवैज्ञानिक और सामाजिक स्तर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। कई बार ऐसी सामग्री सांप्रदायिक तनाव और दंगा-फसाद को जन्म देती है।