बांग्लादेश में माला-तिलक छिपाकर रहने को मजबूर हिन्दू, इससे क्या सीख ले सकता है भारत?

1971 की जंग में भारत ही था, जो अपने जवानों की शहादत देकर बांग्लादेश को पाकिस्तानी जुल्म से बचाने पहुंचा था, किन्तु अब वही बांग्लादेश, भारत के खिलाफ जहर उगल रहा है। आखिर इसका क्या कारण हो सकता है ?

बांग्लादेश में माला-तिलक छिपाकर रहने को मजबूर हिन्दू, इससे क्या सीख ले सकता है भारत?

बांग्लादेश में हिन्दुओं पर इस्लामी कट्टरपंथियों का अत्यचार जारी, धर्म छिपकर जीने को हुए मजबूर

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Highlights

  • बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की स्थिति
  • भारत और बांग्लादेश का इतिहास
  • शेख हसीना का पतन और कट्टरपंथ का उभार

ढाका : बांग्लादेश में शेख हसीना का तख्तापलट होने के बाद से ही स्थिति दयनीय हैं, सबसे बुरी हालत उन अल्पसंख्यकों की है, जो बीते 5 दशकों से बांग्लादेश को अपना मुल्क मानते आ रहे थे और वहां की उन्नति में योगदान दे रहे थे। किन्तु, पूर्व पीएम शेख हसीना के जाने के बाद से बांग्लादेश में जो मजहबी उन्माद उठा है, उसने दुनियाभर में एक नई बहस छेड़ दी है, क्या मुस्लिम समुदय किसी अन्य के साथ सहअस्त्तिव में नहीं रह सकता?

दरअसल,  हिन्दुओं, विशेष रूप से ISKCON अनुयायियों, के खिलाफ बढ़ते हमले और अत्याचारों ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय में चिंता बढ़ा दी है। हाल के वर्षों में कई घटनाएँ सामने आई हैं, जिनसे स्पष्ट होता है कि वहाँ हिन्दू-ईसाई और बौद्ध समुदाय लगातार उत्पीड़न का शिकार हो रहा है। स्थिति इतनी भयावह हो चुकी है कि ISKCON कोलकाता ने अपने अनुयायियों को सलाह दी है कि वे बांग्लादेश में अपनी धार्मिक पहचान छिपाकर रखें। चूँकि, बांग्लादेश में अल्पसंख्यक होने के बावजूद हिन्दू दूसरी सबसे बड़ी आबादी है, इसलिए कट्टरपंथ का सबसे अधिक शिकार वही हो रहे हैं। यहाँ तक कि वे खुलकर अपनी धार्मिक आस्था का पालन भी नहीं कर पा रहे हैं। हाल ही में ISKCON कोलकाता के प्रवक्ता राधारमण दास ने बताया कि बांग्लादेश में हिन्दू साधु और अनुयायी खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। उन्हें तिलक न लगाने, भगवा वस्त्र न पहनने, तुलसी माला न पहनने और पूजा-पाठ छुपकर करने की सलाह दी गई है। यह स्थिति न केवल धार्मिक स्वतंत्रता के खिलाफ है, बल्कि यह वहाँ के कट्टरपंथी तत्वों के बढ़ते प्रभाव को भी दर्शाती है।

हाल ही में इस्लामी कट्टरपंथियों ने ISKCON साधु चिन्मय कृष्ण दास के वकील रामेन रॉय पर जानलेवा हमला किया। रामेन रॉय गंभीर रूप से घायल हैं और ICU में भर्ती हैं। चिन्मय कृष्ण दास, जिन्हें देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया था, पर सरकार की सख्ती और उनके वकील पर हमला, दोनों ने बांग्लादेश में हिन्दुओं की दयनीय स्थिति को उजागर किया है। धार्मिक पहचान के कारण उन्हें लक्षित किया जा रहा है और प्रशासन भी इस मामले में उदासीन बना हुआ है।

भारत की मदद का ये परिणाम?

आज बांग्लादेश में हिन्दुओं की दुर्दशा देखकर यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर क्यों बांग्लादेश, जिसे भारत ने 1971 में बचाया था, आज भारत और हिन्दुओं के खिलाफ कट्टरपंथियों को खुली छूट दे रहा है? 1971 में जब पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में पाकिस्तानी सेना द्वारा बंगाली मुसलमानों और हिन्दुओं पर अत्याचार किए जा रहे थे, तब भारत ने अपनी सेना भेजकर उन्हें मुक्त कराया। बांग्लादेश की स्वतंत्रता के लिए भारत ने अपने 3,800 से अधिक सैनिकों की शहादत दी, लेकिन आज वही बांग्लादेश कट्टरपंथियों का अड्डा बनता जा रहा है, जो हिन्दुओं पर अत्याचार करने से नहीं चूकते।

बांग्लादेश में हिन्दुओं की घटती जनसंख्या को देखकर यह स्पष्ट हो जाता है कि वहाँ योजनाबद्ध रूप से उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है। 1947 में जहाँ बांग्लादेश (तब पूर्वी पाकिस्तान) में हिन्दू जनसंख्या 28% थी, वहीं आज यह घटकर मात्र 7-8% रह गई है। लगातार हमले, मंदिरों की तोड़फोड़, जबरन धर्मांतरण और हिन्दू लड़कियों का अपहरण जैसी घटनाएँ यहाँ आम हो चुकी हैं। क्या यह वही देश है जिसे भारत ने अपने हजारों सैनिकों की कुर्बानी देकर आज़ाद कराया था? हालाँकि, गौर करने वाली बात ये भी है कि जब इन अल्पसंख्यकों को थोड़ी राहत देने के लिए CAA कानून बनाया गया था, तब कई विपक्षी नेताओं ने इसका विरोध किया था और यहाँ तक कह दिया था कि पाकिस्तान-बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर कोई अत्याचार नहीं होता, किन्तु आज स्थिति सबके सामने है।

हालाँकि, बांग्लादेश में जो हो रहा है, वह केवल एक उदाहरण भर है। पाकिस्तान, अफगानिस्तान, सीरिया, जैसे कट्टर इस्लामी देशों में भी अल्पसंख्यक समुदायों के साथ ऐसा ही व्यवहार किया जाता है। भारत जैसे बहुसांस्कृतिक और बहुधार्मिक देश में मुसलमान अपनी धार्मिक पहचान के साथ बिना किसी डर के रहते हैं, लेकिन इस्लामी देशों में हिन्दुओं को अपने धर्म का पालन करने तक की स्वतंत्रता नहीं दी जाती। क्या ये अंतर्राष्ट्रीय समुदाय और मानवाधिकार संगठन होने का दावा करने वाले समूहों के लिए चिंता का विषय नहीं ?

यह एक गंभीर विषय है जिस पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय को संज्ञान लेना चाहिए। धार्मिक स्वतंत्रता और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की गारंटी किसी भी सभ्य समाज की बुनियादी ज़िम्मेदारी होनी चाहिए। संयुक्त राष्ट्र और अन्य वैश्विक संगठनों को इस पर सख्त कदम उठाने चाहिए, ताकि बांग्लादेश और अन्य इस्लामी देशों में रहने वाले हिन्दू और अन्य अल्पसंख्यक सुरक्षित महसूस कर सकें।

बांग्लादेश में हिन्दुओं की स्थिति किसी से छिपी नहीं है। वहाँ कट्टरपंथी ताकतें खुलकर हिन्दुओं को निशाना बना रही हैं और प्रशासन आँखें मूँदे बैठा है। यह स्थिति बताती है कि कट्टरपंथ किसी भी समाज में अल्पसंख्यकों के लिए खतरा बन सकता है। भारत को भी इस स्थिति से सबक लेना चाहिए और सुनिश्चित करना चाहिए कि यहाँ कट्टरपंथी मानसिकता पैर न पसार सके। हमें अपनी धार्मिक सहिष्णुता को बनाए रखते हुए यह समझना होगा कि इस्लामी कट्टरपंथ का सामना करने के लिए ठोस नीति की आवश्यकता है, नहीं तो भविष्य में भारत में भी ऐसी ही स्थिति उत्पन्न हो सकती है।

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