'संविधान जलाने वाला मैं पहला व्यक्ति होऊंगा..' ऐसा क्यों बोले थे बाबा साहेब आंबेडकर..?

जिस संविधान को बाबा साहेब आंबेडकर ने इतनी मेहनत से तैयार किया, उसे ही जलाने की बात क्यों कही। उनका कहना था कि संविधान रुपी मंदिर पर कभी भी असुरों का कब्जा नहीं होना चाहिए। कौन थे ये असुर? राज्यसभा में उन्होंने खुद बताई थी सच्चाई।

'संविधान जलाने वाला मैं पहला व्यक्ति होऊंगा..' ऐसा क्यों बोले थे बाबा साहेब आंबेडकर..?

जब बाबा साहेब ने संसद में कही थी संविधान जला देने की बात

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Highlights

  • भारतीय संविधान के गुप्त तथ्य।
  • संविधान क्यों जलाना चाहते थे बाबा साहेब?
  • भारतीय संविधान पर बाबा साहेब के विचार।

14 अप्रैल 1891 को जन्मे बाबा साहेब अम्बेडकर (Bhimrao Ramji Ambedkar) का नाम अक्सर भारत की राजनीति में वोटर्स को रिझाने के लिए काफी इस्तेमाल किया जाता है, चाहे वो पार्टी कोई भी हो। कभी संविधान के नाम पर तो कभी दलित उत्थान के नाम पर, बाबा साहेब की आड़ लेकर सियासी लाभ लेने का खेल भारत में बहुत पुराना है। किन्तु बहुत कम लोग ये जानते हैं कि जिन बाबा साहेब को हम संविधान निर्माता कहते हैं, उनका खुद का संविधान के प्रति रवैया क्या था। 

कितने लोगों ने मिलकर लिखा था संविधान ?

भारत की संविधान सभा में  डॉ राजेंद्र प्रसाद, डॉ भीमराव अंबेडकर, दुर्गाबाई देशमुख, कन्हैयालाल माणिकलाल जैसे कुल 299 विद्वान सदस्य शामिल थे, इस सभा के अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद थे। जबकि बाबा साहेब संविधान का प्रारूप बनाने वाली यानी उसे लेखन में लाने वाली समिति के अध्यक्ष थे, जिसने संविधान का मौसादा तैयार किया। 

भारतीय संविधान में किस देश से क्या लिया गया ?

भारतीय संविधान को बनाने में अमेरिका, ब्रिटेन, आयरलैंड, कनाडा, रूस, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका जैसे कई देशों के संविधान का अध्य्यन किया गया और फिर उनकी बातें अपने संविधान में शामिल की गईं। जैसे अमेरिका के संविधान से मौलिक अधिकार, राष्ट्रपति पद, महाभियोग, और सर्वोच्च न्यायालय आदि के बारे में जानकारी जुटाई गई। जिसने हम पर शासन किया उस ब्रिटेन के संविधान के अनुसार, संसदीय प्रणाली, एकल नागरिकता, विधि का शासन, और कानून निर्माण प्रक्रिया को अपनाया गया। आयरलैंड जैसे छोटे देश से संविधान में नीति निर्देशक तत्व जोड़े गए।। वहीं कनाडा से भी जोड़ा गया, संघात्मक व्यवस्था, राज्यपालों की नियुक्ति, और शक्तियों का विभाजन। भारत ने अपने परम मित्र रूस के संविधान से मौलिक कर्तव्य को अपनाया और फ्रांस से गणतंत्र, स्वतंत्रता, समानता, और बंधुत्व के सिद्धांत आत्मसात किए ।

इनके अलावा, ऑस्ट्रेलिया के संविधान से समवर्ती सूची, और संयुक्त बैठक, दक्षिण अफ्रीका से संविधान संशोधन प्रक्रिया, अडोल्फ हिटलर वाले जर्मनी से आपातकाल के दौरान मौलिक अधिकारों का निलंबन और तकनीक में सबसे आगे निकल चुके जापान से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया को ग्रहण किया। इस पूरी प्रक्रिया में 2 साल, 11 महीने और 18 दिन का समय लगा, जो 9 दिसंबर, 1946 को शुरू हुई थी और 26 नवंबर, 1949 को जाकर समाप्त हुई। लेकिन संविधान का प्रारूप बनाने वाले बाबा साहेब इससे खुश नहीं थे, वे इसे जला डालना चाहते थे।

संविधान क्यों जला डालना चाहते थे बाबा साहेब आंबेडकर?

संभवतः उन्हें पहले ही यह आभास हो गया था कि देश की पांच फ़ीसदी से भी कम आबादी वाला संभ्रांत तबका संविधान की आड़ लेकर, देश के लोकतंत्र को भी को हाईजैक कर लेगा और 95 फ़ीसदी तबके को उसका फायदा नहीं मिलेगा। दरअसल, आज़ादी के बाद ही देश में जिस तरह सियासी परिवार पैदा हुए और पूरी सत्ता उन्हें के आसपास घूमने लगी। संविधान की आड़ लेकर, कैसे वो लोग केवल अपने हितों की पूर्ति कर रहे हैं और सिर्फ उनके परिवार या उनसे ताल्लुक रखने वाले ही लाभ ले रहे हैं, उससे स्पष्ट लगता है, डॉ अंबेडकर की आशंका बिल्कुल ग़लत नहीं थी। बाबा साहेब अंबेडकर ने दो सितंबर 1953 को संसद के उच्च सदन में चर्चा के दौरान कहा था कि, 'श्रीमान, मेरे मित्र कहते हैं कि मैंने संविधान बनाया है। लेकिन मैं यह कहने के लिए पूरी तरह तैयार हूं कि इस संविधान को जलाने वाला मैं पहला व्यक्ति होऊंगा। मुझे इसकी आवश्यकता नहीं है। यह किसी के लिए अच्छा नहीं है।' 

राज्यसभा में बाबा साहेब का भाषण :

इस घटना के दो वर्ष बाद, 19 मार्च 1955 को पंजाब से राज्यसभा सांसद डॉ अनूप सिंह ने सदन में बहस के दौरान डॉ अंबेडकर के स्मरण कराते हुए कहा था, 'पिछली बार आपने संविधान जलाने की बात कही थी।' इस पर डॉ अंबेडकर ने जवाब देते हुए कहा कि, 'मेरे मित्र अनूपजी ने कहा कि मैंने कहा था कि मैं संविधान को जला देना चाहता हूं। पिछली बार मैं जल्दी में इसकी वजह नहीं बता सका था। लेकिन अब अवसर मिला है तो बताता हूं। हमने भगवान के रहने के लिए संविधान रूपी मंदिर बनाया है, लेकिन भगवान उसमे आकर रहते, उससे पहले ही राक्षस आकर उसमें रहने लगा है। ऐसे में मंदिर को तोड़ देने के अलावा रास्ता ही क्या है?'

बाबा साहेब ने कहा था कि, 'हमने इसे असुरों के लिए नहीं, बल्कि देवताओं के लिए बनाया है। मैं नहीं चाहता कि संविधान के इस मंदिर पर असुरों का आधिपत्य हो जाए। हम चाहते हैं इस पर देवों का अधिकार हो। यही वजह है कि मैंने कहा था कि मैं संविधान को जलाना पसंद करूंगा।' इस पर एक अन्य सांसद वीकेपी सिन्हा ने कहा कि, 'आप मंदिर ध्वस्त करने की बात क्यों करते हैं, आप असुरों को क्यों नहीं बाहर निकाल देते ?' इस पर शतपथ से देवासुर संग्राम की घटना का उल्लेख करते हुए बाबासाहेब ने कहा कि, 'आप ऐसा नहीं कर सकते। हम में अभी तक वह शक्ति नहीं आई है कि असुरों को भगा सकें।' अब बाबा साहेब किसकी बात कर रहे थे, या उनका इशारा किस तरफ था, ये बात वे ही सबसे अच्छी तरह जानते थे। लेकिन, एक बात तो सत्य है कि संविधान की आड़ लेकर कई गलत काम भी हो रहे हैं, कई अपराधी भी छूट रहे हैं, शायद बाबा साहेब का इशारा इसी ओर हो।

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